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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।

अथवा
स्वच्छन्द काव्यधारा (रीतिमुक्त) काव्यधारा से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट करते हुए रीतिबद्ध काव्यधारा से अन्तर बताइये
अथवा
हिन्दी की रीति मुक्ति कवियों की विशेषताएँ बताइये।

उत्तर -

रीतिकाल आचार्य शुक्ल का दिया हुआ नाम है। वस्तुतः यह मध्यकाल का उत्तरार्द्ध है। पूर्वार्द्ध को शुक्ल जी ने भक्तिकाल की संज्ञा से अभिहित किया है। भक्तिकाल की प्रमुख वृत्ति भक्ति थी और रीतिकाल की रीति एवं श्रृंगार। इसी आधार पर शुक्ल जी ने राजो का यह नामकरण किया है आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र रीतिकाल को श्रृंगार काल कहना ही अधिक उपयुक्त मानते हैं। मिश्र जी के अनुसार मध्यकाल में तत्वतः तीन प्रकार की काव्यधाराएँ प्रचलित थीं- (1) भक्ति काव्यधारा (2) रीति काव्यधारा (3) तथा स्वच्छन्द काव्यधारा की। घनान्द स्वच्छन्द वृत्ति के कवि थे।

रीतिकाल में भी काव्य की तीन धाराएँ ही प्रचलित थीं -

(1) रीतिबद्ध काव्यधारा
(2) रीतिमुक्त काव्यधारा
(3) रीतिसिद्ध काव्यधारा।

रीतिबद्ध काव्यधारा के कवि रीति की परिपाटियों के अनुसार ही काव्य रचना किया करते थे। बँधी बँधाई परिपाटी के अनुसार ही काव्य रचना करने के कारण ये कवि रीतिबद्ध कहलाये।

इस धारा के प्रमुख उल्लेखनीय कवियों में देव, मतिराम, पद्माकर आदि सर्वोपरि हैं।

रीतिमुक्त काव्यधारा के अन्तर्गत रीति की परम्परागत परिपाटियों से न बँधकर स्वच्छन्द, प्रवृत्ति के अनुसार कविता करने वाले कवि आते हैं। हिन्दी साहित्य के अधिकांश इतिहासकारों ने इन रीतिमुक्त कवियों की काव्यमीमांसा करना ही उचित नहीं समझा और इनको फुटकर कवियों में ही स्थान दिया, जबकि इनकी कविता रीतिबद्ध कवियों की कविता से भी श्रेष्ठ ठहरती है। वास्तव में ये कवि न नगण्य ही हैं न उपेक्षय ही। इन कवियों में विशेष उल्लेख्य कवि हैं- ठाकुर, घनानन्द, बोधा. आलम, रसखान आदि। आचार्य शुक्ल ने कवियों को रीति बन्धन से मुक्त होकर श्रृंगार रस की फुटकर रचना करने वाले प्रेमोन्त कवि कहा है। इनकी दो विशेषताएं शुक्ल जी ने बताई हैं-

(1) रस भाव नायक-नायिकाओं, अलंकारों के लक्षण से मुक्त कविता,
(2) मार्मिकता एवं मनोहरता का बाहुल्य।

आचार्य शुक्ल ने उपर्युक्त कवियों में घनानन्द जी को सर्वश्रेष्ठ बताया है। हरिऔध जी ने प्रेममय उल्लास और हार्दिक अनुराग को व्यक्त करने वाले इन कवियों की एक लम्बी सूची दी है, जिसमें उपर्युक्त कवियों का नामोल्लेख विशेष रूप से किया है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने उपर्युक्त विशेष उल्लेखनीय कवियों मे द्विजदेवक नाम और जोड़ दिया है। अन्य हिन्दी समीक्षकों ने भी इस धारा के कवियों का विवेचन बड़े मनोयोग से किया है। कुछ ने तो इस धारा के कवियों का विस्तृत विवेचन किया है। घनानन्द ठाकुर पर तो शोधकार्य भी हुआ है। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. भागीरथ मिश्र, डॉ. मनोहर लाल गौड़, डॉ. बच्चसिंह, डॉ. कृष्णचन्द्र वर्मा आदि सभी अपनी-अपनी सूची में उपर्युक्त कवियों को प्रमुखता प्रदान कर गये हैं।

तीसरी रीतिसिद्ध काव्यधारा के अन्तर्गत अकेले महाकवि बिहारी आते हैं। उनके काव्य में रीतियाँ सामयिक प्रभाव के कारण स्वतः ही आकर सिद्ध हो गयी हैं। रीतिसिद्ध कवियों में मात्र बिहारी को स्थान दिया गया है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र की यही मान्यता है। इस युग की प्रमुख प्रवृत्ति है। रीतिबद्ध रीतिमुक्त और रीतिसिद्ध सभी काव्यधाराओं के कवियों ने अपनी कविता में शृंगार को प्रधानता दी है।

रीतिबद्ध और रीतिमूलक काव्य का अन्तर - रीतिबद्ध काव्य के कवियों ने अपने काव्य में परम्परागत तत्वों, सिद्धान्तों को अपनाया है। वास्तव में रीतिबद्ध और रीतिमुक्त कवियों का काव्य सम्बन्धी दृष्टिकोण दो विरोधी रेखाओं को स्पर्श करता है रीतिबद्ध कवियों ने शास्त्रीय परम्परा को आधार बनाकर काव्य रचना की है। इस अलंकार, रीति-ध्वनि, वक्रोक्ति और पिंगल की सीमा रेखा में बंधकर ये कवि सिद्धान्त प्रतिपादन भी कर रहे हैं। और कविता भी लिखते रहे हैं। वस्तुतः इन कवियों ने लक्षण ग्रन्थों की रचना की है इसके विपरीत रीतिमुक्त कवियों ने परम्परागत मार्ग को नहीं अपनाया है। इन स्वच्छन्द अथवा रीतिमुक्त कवियों ने कविता को अनुभति प्रेरित माना है और भाव को प्रधानता देते हुए भाषा को उसके बाद स्थान दिया है।

यही कारण है कि एक ओर रीतिवाद केशव ने कविता कामिनी के लिए अलंकारों की आवश्यकता पर जोर दिया है और "भूषन बिनु न बिराजही कविता बनिता मित" कहा है तो दूसरी ओर घनानन्द ने काव्य को जीवन की आत्मा स्वीकार किया है और कहा है "लोग हैं लागि कवित्त बनावत मोहि तो मेरे कवित्त बनावत" परम्परागत मार्ग अनुसरण करने वाले रीतिबद्ध कवियों का स्वच्छन्दमार्गीय कवि ठाकुर ने तो करारा व्यंग्य किया है और यहाँ तक कह दिया है कि लोगों ने कविता को खेल समझ रखा है। ऐसे रीतिवादी कवि कविता को एक मिट्टी का ढेला समझते हैं और सभ्य समाज के बीच फैंककर संतोष का अनुभव करते हैं।

रीतिबद्ध कवियों ने अपने काव्य को ही नहीं अपनी प्रेम भावना को शास्त्रीय परिपाटी से जोड़े रखा है। यही कारण है कि इन्होंने प्रेममार्ग में सखी, सखा और दूती के माध्यम से प्रेम निवेदन प्रस्तुत किया है। इसके विपरीत रीतिमुक्त कवियों ने किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं समझी है। इतना ही नहीं रीतिबद्ध कवियों का प्रेम विलास की सामग्री प्रस्तुत करता है। जबकि रीति मुक्त कवियों का प्रेम सरल, सीधा, पवित्र और उदात्त है। रीतिबद्ध कवियों के प्रेम में सामाजिकता का निर्वाह किया गया है जबकि रीतिमुक्त कवियों के प्रेम का वैयक्तिक स्वरूप अभिव्यक्त हुआ है। संयोग और मिलन के क्षण, अभिसार प्रणय क्रीड़ाओं और वेदना जनित स्थितियों के चित्र रीतिबद्ध काव्य में अधिक हल्के और छिछले हैं जबकि रीतिमुक्त काव्य में ऐसा नहीं है। रीतिमुक्त कवियों ने बाह्य सौन्दर्य के अलावा आन्तरिक सौन्दर्य और मानसिक सौन्दर्य का चित्रण भी किया है। जबकि रीतिबद्ध कवियों ने ऐसा नहीं किया है। रीतिबद्ध कवि सामाजिक धरातल पर और रीतिमुक्त कवि धरातल पर सौन्दर्य की खोज करते रहे हैं। परिणामस्वरूप रीतिबद्ध कवियों की दृष्टि एकान्त में जीवन खोजती रही है। एक काव्य में यह कह सकते हैं कि रीतिमुक्त कवियों ने किसी भी राजा का आश्रय कभी स्वीकार नहीं किया है।

शिल्प के धरातल पर देखे तो इन दोनों कवियों अर्थात् रीतिबद्ध और रीतिमुक्त कवियों की दृष्टि अलग-अलग रही है। रीतिबद्ध कवियों ने अलंकार और चमत्कार प्रदर्शन के प्रति उदासीनता बरती है। वास्तव में स्वतन्त्र अभिव्यंजना शैली ओर विरोध जन्य दृष्टि के साथ सरलता और सादगी को अपनाना ही रीतिमुक्त कवियों के शिल्प की विशेषता है। रीतिमुक्त का सीधा सा अर्थ है रीति अर्थात् बन्धन परिपाटी से मुक्त और रीतिबद्ध का अर्थ है रीति से युक्त। रीति से युक्त होने के कारण ही घनानन्द, बोधा, ठाकुर और आलम को स्वच्छन्द काव्यधारा का कवि भी कहा जाता है।

स्वच्छन्द काव्य या रीतिमुक्त काव्य की विशेषताएँ - यह निम्न प्रकार है -

(1) स्वच्छन्द काव्यधारा के कवियों की प्रमुख विशेषता प्रेम नाम की मनोवृत्ति का सहज उद्घाटन है। उन्होंने प्रेम और विरह की धारा में स्नान करके सौन्दर्य रूपी शराब की मस्ती में डूबकर जो कविता की, वह उनके हृदय की गहराइयों से निकली हुई है। इन सभी कवियों ने प्रेम के मार्ग को सरल, सपाट और ऋजु बताया है। घनानन्द "अति सूघो स्नेह को मार्ग है" कहकर इसी भाव को व्यक्त करते हैं। उनके प्रेम में अभिलाषा भावना की ही प्रधानता है।

(2) रीतिमुक्त स्वच्छन्द काव्यधारा के कवियों ने जिस प्रेम का वर्णन किया है, वह उदात्त है। उसमें संकीर्णता, वासना और शारीरिक पक्ष के लिए अधिक स्थान नहीं है। उदाहरणार्थ ये पंक्तियाँ देखिए

"जब ते निहारे घन आनन्द सुजान प्यारे,
तबते अनोखी आग लागि रही चाह की।'

कवि के प्रेम की गम्भीरता का उन्माद उनके जड़ चेतन के भेद ज्ञान को भी विलुप्त सा कर देता है, तभी तो वे अपने प्रेमाश्रयों को प्रियतम के आँगन में बरसने का अनुरोध जड़ मेघ से करते हैं -

घर आनन्द जीवनदायक हौ, कंछु मेरी हूँ पीरहिये परसौ।
कबहुँ वा बिसासी सुजान के आँगन, मो असुवान को लै बरसों।'

अतः यह स्पष्ट है कि घनानन्द का प्रेम अत्यन्त पावन एवं पूर्णतया शुद्ध था।

(3) स्वच्छन्दतावादी काव्य हृदय से निकले हुए भावों का उन्मुक्त प्रवाह है, यह वह काव्य है जो "काव्यशास्त्रीय नियमों के किनारे को तोड़कर चपल उन्मुक्त नदी की भाँति प्रवाहित होता है। यह जीवन के शाश्वत मनोभावों को गतिशील करने वाली काव्यगत आन्तरिक अनुभूति है।

(4) स्वच्छन्दतावादी काव्य आत्मपरक और व्यक्तिवादी है। घनानन्द के काव्य को ही लें तो स्पष्ट होता है कि उनके काव्य में निरूपित समस्त प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण उनकी वैयक्तिकता का परिणाम है। घनानन्द ने सुजान के प्रेमपाश में बँधकर जिस सौन्दर्य का चित्रण किया है, वह न केवल स्वच्छन्दतावादी काव्य में वरन् रीतिकाल में भी अद्भुत है।

(5) रीतिमुक्त काव्य के कवि अपने काव्य के प्रति सतर्क रहे हैं। उन्होंने अपने काव्य को अपनी एक साधना के रूप में स्वीकार किया है न कि खेल के रूप में। यही कारण है कि इन कवियों की कविता हृदय को छूती है। उसमे चमत्कार प्रदर्शन का न तो कोई भाव है और न ही कोई आरोपण।

(6) रीतिमुक्त कविता व्यक्ति प्रधान है। इसमें प्रेम को वैयक्तिक धरातल पर प्रस्तुत किया गया है। इसका कारण यही है कि सभी कवियों ने अपनी भोगी हुई प्रेमानुभूतियों को ही अभिव्यक्ति प्रदान की है न कि सुनी सुनाई बातों को दोहराया है।

(7) रीतिमुक्त काव्य की एक विशेषता यह भी है कि काव्य व्यधा प्रधान है। प्रेम इस काव्य में दुःख का कारण बनकर आया है न कि सुख का। इसके दो कारण हैं एक तो यह है कि इन कवियों के मिलने के क्षण बहुत ही थोड़े होते थे और दूसरा यह कि इन्हें संयोग में वियोग की आशंका बनी रहती थी।

(8) रीतिमुक्त काव्य परम्परा से अलग हटकर लिखा गया है। इसमें शास्त्रीय परम्परा और नियमों का पालन नहीं किया गया है। वस्तुतः इन कवियों ने सिद्धान्त निरूपण की अपेक्षा अनुभूति निरूपण को ही अपने काव्य का विषय बनाया है। यह वह काव्य है जिसमें न तो अलंकारशास्त्र की व्याख्या है, न ध्वनि की, न रस की सांगोपाग विवेचन है; न वक्रता का और न ही औचित्य प्रतिपादन का। इतना ही नहीं इस काव्यधारा के कवि नायिका नायक भेद जैसी चीजों से भी काफी दूर रहे है। सूक्ष्म, मानसिक और शारीरिक अदाओं का चित्रण इस काव्य की अनमोल निधि है।

(9) रीतिमुक्त काव्य में प्रेम का उदात्त स्वरूप चित्रित हुआ है। वासना के लिए यहाँ कोई स्थान नहीं है। प्रत्येक कवि अपनी किसी न किसी प्रेमिका के लिए समर्पित है। वह निष्ठुर प्रेमिका द्वारा दी गयी वेदना को खुले मन से स्वीकार कर लेता है क्योंकि वह मानता है कि जो भी उसकी प्रेमिका है वही उसका सर्वस्व है।

(10) रीतिमुक्त काव्य पर कहीं-कहीं फारसी साहित्य का प्रभाव भी दिखाई देता है। घनानन्द का काव्य इसका ज्वलन्त प्रमाण है। फारसी साहित्य का खुलापन रीतिमुक्त काव्य की उल्लेखनीय विशेषता है। फारसी की भाषा शैली को भी उन्होंने अपनाया है।

उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि रीतिमुक्त कवि स्वभाव से ही स्वच्छन्द रहे हैं। अतः उनका काव्य भी रीति से मुक्त और स्वच्छन्द है। इन कवियों ने प्रेम सागर में डुबकियाँ लगाकर अनुभूतियों के जो मोती प्राप्त किये थे उन्हीं को पूरी चमक-दमक के साथ अपनी कविताओं में प्रस्तुत किया है। यद्यपि इन कवियों ने राधा और कृष्ण के प्रति भी अनन्य भाव रखा है, किन्तु फिर भी इनका प्रेम स्वच्छन्द, सरल, सीधा और प्रशस्त है। विरह वेदना की जैसी धार्मिक अनुभूतियाँ रीतिमुक्त काव्य में मिलती हैं वैसी अन्यत्र दुर्लभ हैं। प्रेम की एकनिष्ठता, समर्पण की गहराई, विरहानुभूति की तीव्रता और सौन्दर्य का सूक्ष्म से सूक्ष्म वर्णन रीतिमुक्त काव्य की उपलब्धियों में ही माना जाना चाहिए। शिल्प के धरातल पर भी रीतिमुक्त काव्य किसी प्रकार भी हल्का नहीं पड़ता है। इतना तो निश्चित है कि इन कवियों ने रीतिमुक्त काव्यधारा से जुड़ने के कारण शिल्प को सादगी और सरलता के साथ ही प्रस्तुत किया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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